धींवर... आखिर इस दुर्दशा का जिम्मेवार कौन ???
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धींवर जाति दयनीय परिस्थितियों में संघर्षरत है।
भारत की राज्य सरकारे ही नहीं उच्च स्तर तक को इसका आभास है। हम स्वयं इस सत्यता को मुखरता से स्वीकार करते हैं। मगर छोभ का विषय यह है कि हम इस दुर्दशा के मुख्य पहलुओं की ओर ध्यान कभी नहीं देते। हमारी इस शांत और मेहनती जाति को रसातल तक पहुचाने का जिमीवार कौन है। क्या हम स्वयं अथवा इसके पीछे कुछ अन्य कारण रहे हैं ? हम कभी वास्तविक पहलुओं का पक्ष अथवा विश्लेषण नहीं करके स्वयं खुद को ही दोषी ठहरा देते हैं। कभी शिक्षा का रोना रोयंगे,कभी एकजुटता को उत्तरदायी बना देंगे। इससे आगे की सोच हम कभी उत्पन्न ही नहीं होने देते।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धींवर जाति दयनीय परिस्थितियों में संघर्षरत है।
भारत की राज्य सरकारे ही नहीं उच्च स्तर तक को इसका आभास है। हम स्वयं इस सत्यता को मुखरता से स्वीकार करते हैं। मगर छोभ का विषय यह है कि हम इस दुर्दशा के मुख्य पहलुओं की ओर ध्यान कभी नहीं देते। हमारी इस शांत और मेहनती जाति को रसातल तक पहुचाने का जिमीवार कौन है। क्या हम स्वयं अथवा इसके पीछे कुछ अन्य कारण रहे हैं ? हम कभी वास्तविक पहलुओं का पक्ष अथवा विश्लेषण नहीं करके स्वयं खुद को ही दोषी ठहरा देते हैं। कभी शिक्षा का रोना रोयंगे,कभी एकजुटता को उत्तरदायी बना देंगे। इससे आगे की सोच हम कभी उत्पन्न ही नहीं होने देते।
धींवर जाति गरीब क्यों है ??
प्रारम्भ से धींवर जाति का मुख्य व्यवसाय मत्स्य पालन रहा है। इसका स्पष्ट अर्थ है कि जल और जंगल पर हमारा सामान अधिपत्य रहा होगा। लेकिन इसका अर्थ यह भी है कि इस जाति की नगरीकरण में नाममात्र की भूमिका रही होगी। परिणामस्वरूप धींवर जाति ने ग्रामीण प्रष्ठभूमि को ही अपने जीवन का आधार बनाया और रोजी रोटी के अधिकांशत प्रयास जल और जंगलों में तलाशे गए। इन्ही कार्यों के अंतर्गत आर्यों ने इस जाति को शुद्र की श्रेणी में स्थापित कर दिया। यही से इस जाति के पतन की व्यथा आरम्भ होती है। शने: शने: जंगल और जलाशय इत्यादि ख़त्म होने से रोजगार के अवसर समाप्ति के कागार पर पहुँचने लगे। धींवर ने अस्थायी विकल्प के रूप में स्वर्ण जातियों के घरों में पानी भरने एवं बेगार करने का रास्ता चुना। यह जाति जल से जुडी थी। इस कारण स्वर्ण जातियों को इनके हाथ का पानी ग्रहण करने और घर में घुसने पर कोई पाबंदी भी नहीं थी। धींवर शांतप्रिय और स्वामिभक्त लोग थे। विद्रोह करना
अथवा दबंगई वाला कोई भी स्वभाव इनमे प्रकट नहीं होता था। जबकि स्वर्ण जातियों की प्रवर्ती इसके ठीक उलट थी। उन्होंने जंगलों और तालबों पर एकाधिकार करना शुरू कर दिया। उन्होंने इस जाति के सरल स्वभाव का फायदा उठाकर इन्ही के संसाधनों पर अकारण आधिपत्य किया। इसके अत्यंत घातक परिणाम हुए। धींवर जाति के हाथों से उसके मुख्य रोजगार छीन गए और वह रोजी रोटी के लिए पूर्णतया स्वर्ण जातियों के ऊपर आश्रित हो गया। ना उसके पास मछली पकड़ने के लिए पानी था ना ही अन्न उगाने के लिए जमीन। जिनके पास थोड़ी बहुत जमीन थी, उसे भी लोग कब्जाने का षड्यंत्र बनाने लगे। दरिद्रता की वास्तविक कथा यही से आरम्भ हुई।
अथवा दबंगई वाला कोई भी स्वभाव इनमे प्रकट नहीं होता था। जबकि स्वर्ण जातियों की प्रवर्ती इसके ठीक उलट थी। उन्होंने जंगलों और तालबों पर एकाधिकार करना शुरू कर दिया। उन्होंने इस जाति के सरल स्वभाव का फायदा उठाकर इन्ही के संसाधनों पर अकारण आधिपत्य किया। इसके अत्यंत घातक परिणाम हुए। धींवर जाति के हाथों से उसके मुख्य रोजगार छीन गए और वह रोजी रोटी के लिए पूर्णतया स्वर्ण जातियों के ऊपर आश्रित हो गया। ना उसके पास मछली पकड़ने के लिए पानी था ना ही अन्न उगाने के लिए जमीन। जिनके पास थोड़ी बहुत जमीन थी, उसे भी लोग कब्जाने का षड्यंत्र बनाने लगे। दरिद्रता की वास्तविक कथा यही से आरम्भ हुई।
धींवर शिक्षा से वंचित क्यों ??
आर्यों ने श्र्ग्वेदिक काल में शूद्रों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा।शूद्रों को वेदों को पढने का कोई अधिकार नहीं था। केवल सुनने की अनुमति
थी। उन्होंने जो कहानियां पढ़ाई धींवर जाति ने उसका अनुसरण किया। किन्तु आधुनिक युग में प्रवेश के समय इस जाति की उसके कर्मों के संग चली आ रही दरिद्रता शिक्षा में अवरोध बन गई। परिणाम यह हुआ कि इस जाति के बहुसंख्यक मजदुर अपनी संतानों को शिक्षा से लाभंविंत नहीं कर पाए। जिसके कारण गरीबी और शिक्षा का प्रतिशत गिरता चला गया। रोजगार के लिए न इस जाति के पास जमीन थी और न स्वर्ण जातियों के यहाँ बेगार करने से अतरिक्त दूसरा धधा। परिणामत यह जाति पिछडती चली गई।
थी। उन्होंने जो कहानियां पढ़ाई धींवर जाति ने उसका अनुसरण किया। किन्तु आधुनिक युग में प्रवेश के समय इस जाति की उसके कर्मों के संग चली आ रही दरिद्रता शिक्षा में अवरोध बन गई। परिणाम यह हुआ कि इस जाति के बहुसंख्यक मजदुर अपनी संतानों को शिक्षा से लाभंविंत नहीं कर पाए। जिसके कारण गरीबी और शिक्षा का प्रतिशत गिरता चला गया। रोजगार के लिए न इस जाति के पास जमीन थी और न स्वर्ण जातियों के यहाँ बेगार करने से अतरिक्त दूसरा धधा। परिणामत यह जाति पिछडती चली गई।
धींवर में किसने प्रगति की
धींवर जाति में सर्वप्रथम उन्नति की सीढियाँ चढ़ने वाले वह लोग रहे स्वर्ण जातियों से जिनका जुड़ाव नाममात्र ही था। इनमे किसान धींवर और नगरों में बसे धींवर तरक्की करने में अधिक सफल रहे। मगर जो गरीब तबका था , वह स्वर्ण जातियों के रहमोकरम पर ही निर्भर रहा। गावों में आज भी यही स्थिति है। अगर गरीब धींवर और समर्थ धींवर का विकास अनुपात किया जाए तो ५:९५ बैठेगा। अर्थात अगर गरीब धींवर के ५ बालक सफल होते हैं तो समर्थ धींवर के ९५ बालक सफल होंगे।
वह कारण क्या है जो धींवर जाति प्रगति नहीं कर पा रही है
स्वर्ण जातियों की दबंगई आज भी इस जाति पर जारी है। अपने खेतों में बेगार कराने की परम्परा अभी तक ख़त्म नहीं हो पायी है। स्वर्ण जातियां आज भी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि जिसे वह "कमीन" कहते हैं वह उनकी बराबरी करे। परिणामत उन्होंने इस जाति को इतना भयाक्रांत कर दिया है कि इसमें असुरक्षा की भावना पैदा हो गई है। इस जाति में जो लड़के पढाई करके नौकरी करना चाहते हैं उनके रास्तों में व्यवधान डालकर यह षड्यंत्र रचने से भी बाज नहीं आते। यही नहीं उनके बुजर्गों एवं अभिभावकों को नशे की तरफ अगर्सर करके उन्हें पैसा बांटा जाता है। वह भी मोटे सूद पर। परिणाम यह होता है कि उनके बच्चे शिक्षित हो नहीं पाते और पुन स्वर्ण जातियों की परम्परा का निर्वहन करने लगते हैं। बेगार करने की परम्परा। चुनाव में इस जाति के प्रतिनिधि इसलिए पीछे रह जाते हैं कि स्वर्ण जातियों की दबंगई और उनके कर्ज के चलते वोट उसी प्रतिनिधि को जाते हैं जिसे यह लोग चाहते हैं। इस जाति के संगठन भी इसीलिए असफल हैं कि इनके पास ना साधन हैं और ना ही स्वर्ण जातियों की दबंगई से लड़ने का कोई शसक्त हथियार।
Pawan kashyap,, bahut acha laga apna itihas pad kr
जवाब देंहटाएंPawan kashyap,, bahut acha laga apna itihas pad kr
जवाब देंहटाएंJaynishadraj
जवाब देंहटाएंधीवर या ढीमर एक ही जाति के व्यक्ति इनके अनेक पर्यायवाची शब्द है इनकी मानसिक आर्थिक शैक्षणिक स्थिति अत्यंत कमजोर है क्योंकि शासन पृशासन इनकी समाज की ओर कभी भी उठने के लिए कानूनी कार्यवाही पर ध्यान देना नही चाहती है
जवाब देंहटाएंमग आत्ता पण काही करायचं का नाही
जवाब देंहटाएंजसं जगत आले पूर्वज तस्संच आपणही
जगायचं..... करा काही तरी सुरावट
धीवर जाति के लोग पहले बैगा लिखा करते थे और यह सच है परन्तु बाद में सरनेम बदलते गया और आज हमें पिछड़ी जातियों के साथ रखा गया है।
जवाब देंहटाएंSuresh kashyap ji kashyap bhi mat lagao or apke esha kahne se abhi tak to kuch huya nahi ki ham dhiwar hai .kashyap rishi ji bare mai pada hi nahi hai pahle unhe bare mai pura pado .
जवाब देंहटाएंYour information is absolutely right .....these caste situation is very bad
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